गुरुवार, 24 मार्च 2016

संध्या वर्णन 'हरिऔध' (अयोध्या सिंह उपाध्याय)

दिवस का अवसान समीप था,
गगन था कुछ लोहित हो रहा,
तरु शिखा पर थी अवराजती,
कमलिनी कुलवल्ल्भ की प्रभा,
विपिन बीच विहंगम -वृन्द का,
कल-निनाद विवर्द्धित था हुआ,
ध्वनिमयी विविधा-विहगावलि,
उड़ रही वह मंडल मध्य थी,
अधिक और हुई नभ लालिमा,
दशदिशा अनुरंजित हो गयी,
सकल पादप पुंज हरीतिमा,
अरुणिमा विनिमझित सी हुई,
झलकने पुलिनों पर भी लगी,
गगन के तल की वह लालिमा,
सरित ओ' सर के जल पर पड़ी,
अरुणिता अति ही रमणीय थी,
चल के शिखरों पर जा पड़ी,
किरण पादप शीश विहारिणी,
तरणि बिम्ब तिरोहित हो चला,
गगन मंडल मध्य शनैः शनैः,
ध्वनिमयी करके गिरी कन्दरा,
कलित कानन केलि निकुंज को,
मुरली एक बजी उस काल ही,
तरणिजा तट रजित निकुंज में.

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

सखि बसंत आया, सखि बसंत आया।
बगियन में फूल खिले,
कलियन में रंग मिले,
अंबुआ की डारी पर,
अम्बुआ बौराया !
सखि बसंत आया, सखि बसंत आया !
भँवरे की गुंजन में,
तितली के चुंबन में,
कोकिल ने जीवन का,
गीत गान गाया !
सखि बसंत आया, सखि बसंत आया !
मालिन की डलियन में
फूलन की लडियन में,
सुंदरी के बालों में,
गजरा हर्षाया,
सखि बसंत आया, सखि बसंत आया !
ठंडक में जान पड़ी,
ठिठुरन में घाम पड़ी,
चहुँ और ख़ुशी आन पड़ी,
मौसम हर्षाया,
सखि बसंत आया, सखि बसंत आया !

बुधवार, 6 जनवरी 2016




नए वर्ष के लिए सन्देश :

कहो कहो माँ नई कहानी,
नानी जैसे कहा करे थी,
तुम भी वैसी कहो कहानी,
तूने क्यों कर, बिटिया नुझको,
समझ लिया है अपनी नानी!
चलो माँ मत बात बनाओ,
तुम बिटिया हो नानी की जब,
फिर है काहे की परेशानी?
आरम्भ करो माँ नई कहानी,
कहो दो माँ इक नयी कहानी,
नटखट बिटिया बड़ी हठीली ,
मत कर अबआँखे तू गीली,
मैं कल की हूँ, हुयी पुरानी,
क्या जानूँ मैं नयी कहानी,
तू ही कह दे अपनी बानी,
सुनने में जो लगे सुहानी,
न माँ! न, कहो तुम ही कहानी,
माँ बोली मन दुखता मेरा,
बिगड़ गया संसार बसेरा,
रहना कठिन जीना बेमानी,
नए वर्ष के कोरे कागज़,
पर लिख दे सुख सुविधा वाली,
सुसमृद्ध परिपूर्ण निशानी,
तू ही लिख दे नयी कहानी,
मेरी चाहत के समाज में,
अन्याय का नाम न चाहिए ,
भूख, गरीबी शब्द नहीं हो,
रोटी, कपड़ा, छत भी चाहिए,
दवा- दारू,स्वच्छ पानी संग,
सर्वत्र शिक्षा उपलब्ध निशानी,
हाँ हाँ अम्मा यही कहानी!
परम्परागत रूढ़ि रोड़े,
हैं समाज के असली फोड़े,
तानाशाही भेदभाव के,
इस समाज पर पड़ते कोड़े,
मेरी चाहना के समाज में,
सभी को अवसर सम समान हो,
ये सब अधोगति की हैं निशानी,
हां हाँ मैया यही कहानी!!
नए वर्ष के नव पटल से,
अन्याय का नाम मिटा दें,
राम राज सुनते आये हैं,
सुख सुविधा परिपूर्ण मार्ग से,
राम राज फिर से बना दें,
हां माँ यह तो बड़ी लुभानी,
मैं भी चाहती यही कहानी!!

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

मेरी कविता


मेरी कविता 

संगीत-ज्योतिर्मय,
मेरी कविता 

समस्त संसार हुआ
ज्योतिर्मय,   

मधुर संगीत ध्वनि,
झंकृत कर,  

नदियों के प्रवाह में, 
कलकल,

निर्झर के प्रपात में,
झर झर,

दिक्-दिशायें,
तरंग मधुरमय  

खगवृन्द उड्डगण के,
नृत्य में,

लहराते खेतों में,
जीवन, 
रंगीन पुष्पों की,  
तान-श्रृंगार,

पवित्र संगीत की  धारा,
अनंत आकाशों के छोरों तक,

लहराने वाला जीवन,
संगीतमय श्वास लेता है,

अडचनों को पार कर,
सुखद गुनगुनाहट मृदु तान,

सुन,  मैं चकित,
आनंद-विभोर हो जाती हूँ,

मेरा हृदय विव्हल हो,
संगीत से जुड़,

मेरी आवाज़, अडचन,
फट फट जाती है.

और, मैं  विभोर, अचंबित, 
चुपचाप रो लेती हूँ , 

ओह मेरे प्रभु!
तुम्हारा मधुर! गीतसंगीत !! 

मम हृदय, अटूट-प्रेम पाश में,
बन्ध गया है!!
नया वर्ष पहन के आया माला,
बारहमासी मनकों की माला,

इसमें पिरोहे रंगीन मनके,
बड़े, छोटे, विभिन्न मनके,
कुछ मनके महीनों, दिनों के,
अधमासे, चौमासे मनके ,

माला में हफ्ते पिरोहे,
घंटे पिरोहे,पल,क्षण पिरोह
तरह तरह के रंग पिरोहे,
ऋतुओं के गर्म-ठंड पिरोहे,
वर्षा में भीगे नहाते मनके,
बासंती सतरंगी मनके,

प्रकृति बाला की शाश्वत माला,
सुन्दरी सजी पहन के माला,

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

कल्पनाओं का घोड़ा दौड़ा...

कल्पनाओं का घोड़ा दौड़ा,
कल्पनाओं का घोड़ा दौड़ा,
बिन लगाम ही सरपट दौड़ा,
ऊँची नीची राह न देखी,
फर्राटे से बेइंतहा दौड़ा,
खाई का न खंदक का डर,
दौड़ा बिना पड़े ही कोड़ा,
टाप नदी नाले पर्वत को,
बीहड़बन वन कुछ न छोड़ा,
होश लगी तो कसी लगाम,
मानस को डटकर झंझोड़ा.