दिवस का अवसान समीप था,
गगन था कुछ लोहित हो रहा,
तरु शिखा पर थी अवराजती,
कमलिनी कुलवल्ल्भ की प्रभा,
कमलिनी कुलवल्ल्भ की प्रभा,
विपिन बीच विहंगम -वृन्द का,
कल-निनाद विवर्द्धित था हुआ,
कल-निनाद विवर्द्धित था हुआ,
ध्वनिमयी विविधा-विहगावलि,
उड़ रही वह मंडल मध्य थी,
उड़ रही वह मंडल मध्य थी,
अधिक और हुई नभ लालिमा,
दशदिशा अनुरंजित हो गयी,
दशदिशा अनुरंजित हो गयी,
सकल पादप पुंज हरीतिमा,
अरुणिमा विनिमझित सी हुई,
अरुणिमा विनिमझित सी हुई,
झलकने पुलिनों पर भी लगी,
गगन के तल की वह लालिमा,
गगन के तल की वह लालिमा,
सरित ओ' सर के जल पर पड़ी,
अरुणिता अति ही रमणीय थी,
अरुणिता अति ही रमणीय थी,
चल के शिखरों पर जा पड़ी,
किरण पादप शीश विहारिणी,
किरण पादप शीश विहारिणी,
तरणि बिम्ब तिरोहित हो चला,
गगन मंडल मध्य शनैः शनैः,
गगन मंडल मध्य शनैः शनैः,
ध्वनिमयी करके गिरी कन्दरा,
कलित कानन केलि निकुंज को,
कलित कानन केलि निकुंज को,
मुरली एक बजी उस काल ही,
तरणिजा तट रजित निकुंज में.
तरणिजा तट रजित निकुंज में.